- 6 Posts
- 0 Comment
जबसे हम सामाजिक प्राणी क्या बने, तबसे हम अब अपनी आदत को सुधारने की चिता में कमजोर होते जा रहे है। रात दिन बस एक ही धुन लगी हुई है कि जैसे भी हो अभी भी बहुत सुनहरा मौका है अपने को सुधारने का। ताकि स्वर्गारोहण पर अन्य स्वर्गवासी बंधुओ की भांति अंतिम संस्कार के समय, श्मशान घाट पर मुझे भी लोग भला बुरा न कहे।
एक जमाना हुआ करता था, जब किसी बुरे से बुरे चोर डाकू और बलात्कारी की मौत पर लोग गहरी संवेदना के आंसू बहाते थे। इसी के साथ ही उसके कूकर्मो और दुष्कर्मों पर पर्दा डालते हुए तारीफ के पुल बाधते हुए नहीं अघाते थे। लेकिन अब..तो बस सब कुछ उलटा पुलटा हो गया है। जो श्मशान कभी शोक संवेदना का केद्रं हुए करते थे, अब वही मरने वाले प्राणी की रोमास भरी कामोत्तेजक और बुरी गाथा को बखान करते हुए शुगल का केंद्रबन गए है। ऐसा दावा मैं अपनी आंखों देखी कानों सुनी के आधार पर कर रहा हूं।
हमारे शहर में एक सीनियर सिटीजन बाथ में क्या चल बसे, उनके बार में लोगों ने अपने स्तर पर कयास लगात हुए चुहुलबाजी शुरू की..साला बुड्ढा बहत ही रंगीन था। 70 साल की उम्र में भी बड़ी कमसिन लड़की से शादी रचा ली। भला शरीर दवा के बल पर कितनी देर साथ देता। शर्मा जी तुमको शायद पता नहीं है..सुना था कि जबसे राम बाबू ने यह शादी क्या की..समझो घर की शांति में आग लग गई थी। अरे वर्मा जी घर की छोड़ों असली आग तो राम बाबू के लगी थी, जो घरवाली के मरने के चंद महीने बाद ही फिर शादी कर ली। भइया यह तो हमारे बचपन का दोस्त रहा है..साला शुरू से ही हरामी था..हमलोग इसे राड बाबू कहकर बुलाते थे। मुहल्ले में कोई भी औरत राड हुई नहीं कि इसकी शिकारी नजरे उधर मुड़ जाती और फिर..। चलों मुझे यह बताओ कि आखिर इसने अंतिम सांस बाथरूम में ही क्यों ली भाई.मुझे तो पता चला है कि बच्चों ने राम बाबू को शादी न करने के लिए बहुत समझाया लेकिन कामातुर बाबू कहां मानने वाला था। यह बच्चों की चोरी वियाग्रा की गोली का सहारा लेता था। इसके अलावा फर्राटा भरने के लिए कहीं डबल गोली खा गया होगा। अरे यार बस करो..मरने वाले के बारे में अब ऐसी बाते करना शोभा नहीं देता है। हां हा क्यों नहीं..मरने पर लोग ऐसे ही तुम्हारी गाथा बयां करेंगे।
शर्मा जी लो उधर देखो…यह तो अपने तिवाड़ी जी का परिवार नजर आ रहा है। कौन..तिवाड़ी, वही जो पिछली बार पार्षद का चुनाव लड़ा था और हार गया था। साला बड़ा ठरकी नेता था। इसने गरबी लड़कियों को रोजगार देने के लिए दस पद्रह पीसीओ खोले हुए थे। यहां पर सिर्फ लड़कियां ही बैठती थी। कई लड़कियों को सरकारी नौकरी दिलवाने का झांसा देकर अपना काम निकालता रहा है। अच्छा मुझको तो यह पता ही नहीं था। हम तो इसे बहुत ही शरीफ समझते थे। अरे भाई अब बस भी करो..हमलोग श्मशान घाट में है।
यह सब सुनकर देखकर अब तो ऐसा लगता है कि शिष्टाचार की भाषा लोग भूल गए है। दुख की घड़ी में भी…मरने वाले के बारे में ऐसी बाते करना..राम राम..नमस्कार
Read Comments